Thursday, February 28, 2013

हमसफ़र हमकदम ना हो 
तो हाथ में हो हाथ क्यों ?
जब ताल में कोई सम ना हो 
तो सुख है क्या ? तो साथ क्यों ?

हरियाला मन सुकड़ा   हुआ 
खड़ा क्यों जाने ठूंठ   सा ?
था प्यार सच जो कल तलक 
लागे क्यों जाने झूठ सा ?

 नज़र    घुमा लूं जिस  तरफ 
गहराते इतने सवाल क्यों ?
चला था खोजने किरण 
तो अंधियारे से बवाल क्यों ?

नयी  सुबह की रौशनी 
देती है फिर धोखा नया ,
बिखरता ताश का वो घर
 कोशिश नाकाम कर गया 

जिस घर में देखूं अश्क है 
 जिस घर में देखू आग क्यों ?
हमसफ़र हमकदम ना हो 
तो हाथ में हो हाथ क्यों ?

2 comments:

  1. ये पंक्तियाँ आप के लिए है बहन जी ,
    बातें आप की बहोत कुछ याद दिला जाती है ,
    भरे दिल को भूख का अहसास दिल जाती है ,
    बहोत सुन्दर कविता लिखी है आप ने … …….

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  2. बातों के साये में भी खामोशियाँ जो पलें
    भरे दिलों की मजबूरियां जो खलें
    आसरा फिर तो बस है लफ़्ज़ों का
    कोई समझ ले ज़रा सा , कोई तो दोस्त मिले !

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