Friday, August 26, 2016


नर्मदा  बचाओ ...
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नर्मदा के तीर पे,जो धीर और वीर थे
उन्हीं कलेजों में भरी,आज कितनी पीर है
मगन जो थे धरा गगन,वही मही हुई नगन
जैसे द्रौपदी के तन से ,खींचे कोई चीर है

बसा किये थे गाँव तब,प्रसन्न थे यहाँ पे सब
वीरान किया बाँध ने छीनी सब ज़मीन है
सर की छत ना रही,रहा ना आसरा कोई
बाँध से बन गयी क्या नर्मदा नवीन है ?

बाँध के नदी को तुम,बिजली पानी तौलो तुम
हम सड़क पे आ गए, ये कोई उत्थान है ?
छीन के जीवन हमी से जल का कर रहे गबन
कैसे कहें भारत मेरा सबसे महान है?

सत्याग्रह हम कर रहे,जेलों को हम भर रहे
अहिंसा का है अस्त्र एक ,इक विनय हमारी है
हमसे छीनो देस ना, ना छीनो हमसे ये धरा
नर्मदा के गोद में पली ये पीढ़ी सारी है

मेधा ने दी आवाज़ है,आमटे पे नाज़ है
अरुंधति की कोशिशों ने ज़ोर एक ही दिया
नर्मदा की गोद को बेरुखी से रौंद के
उजाड़ दूसरों के घर रौशनी करी तो क्या?

देश से है बैर ना,मांगे सबकी खैर हाँ
पाएं सारे सुख मगर,हम पे गिरे गाज ना
धरा की गोद में पले माटी में ही मिट चले
रहने का आता है और जीने का अंदाज़ ना

हाथ बांधे हम खड़े,पैर उनके हम पड़े
आज भी जिद पर अड़े नर्मदा को छोड़ दो
वो ना उन्नति कोई छिपी जहाँ क्षति कोई
अपनी प्रगति की राह और कहीं मोड़ दो

अपनी प्रगति की राह और कहीं मोड़ दो
अपनी प्रगति की राह और कहीं मोड़ दो।