Tuesday, October 29, 2013





है लाज़मी क्यों , दर्द हो 
दिल में , तभी कोई लौ जगे ?
है लाज़मी क्यों पीढ़ से 
ही सुर  बजे , सरगम सजे ?

है शर्त क्यों रचना कि ये 
कि जन्म लेगा जीव तब ,
जननी का तन विदीर्ण हो 
और वेदना से तपे वो जब ?

हर सृष्टि को क्यों  चाहिए 
इक गर्भ , दुःख का घट  हो जो ?
हर कविता को क्यों चाहिए 
कवि  हृदय , आहत हो जो ?

सुख में कलम उठती नहीं ,
 दुःख में कलम रुकती नहीं 
है लाज़मी क्यों शब्दों में 
हर टीस  का क्रंदन सजे ?

है लाज़मी क्यों , दर्द हो 
दिल में , तभी कोई लौ जगे ?
है लाज़मी क्यों पीढ़ से 
ही सुर  बजे , सरगम सजे ?

31.5.11

Wednesday, October 23, 2013





चाहे अफ़सोस करें चाहे उदासी ओढें
सभी लम्हों ने मिल के साज़िश की है
आँखों की गहेराइयो में भी दुःख है कहीं
और इक इंसान ने फिर ख्वाहिश की है ?

यादों का क्या है , आज है कल नहीं,
कोई सूरज है की रोज़ चमकेंगी ?
फिर गिरेगी हालातों की बिजली ,
यादों की क्या बिसात , कितना दम लेंगी ?

धीरे धीरे कहीं कुछ घुलता है क्यों?
ना चाह के भी कोई छलता है क्यों?
कहीं तो होगा मेरे भरोसे का किनार ,
दिल दरिया सा फिर मचलता है क्यों?