Saturday, September 8, 2018

*हिंदी-भाषा हृदय की*

।*हिंदी-भाषा हृदय की*।
             -सुनीता राजीव

हिंदी भारत के माथे की
सौभाग्य सजी सी बिंदी है,
जो कभी गंगा सरीखी थी
आज हुई कालिंदी है।

भारतेंदु जी ने चेता था,
निज भाषा की कीमत जानो
उन्नति के पथ पर बढ़ना है
तो  महत्व हिंदी का जानो।

है विश्व हमारा कुटुम्ब मगर
हर जन ये कभी भी भूले ना,
ले चले साथ चाहे अंग्रेज़ी ,
पर अपनी बोली भूले ना ।

सम्मान हृदय में जब तक कि
अपनी भाषा का होगा ना,
तो स्थान विश्व में, कुछ भी करो,
निज देश का तब तक होगा ना।

चाहे चीन कहो जापान कहो
कहो बात फ्रांस या जर्मनी की
है सफल ये देश कि इन सब ने
जानी कीमत निज भाषा की।

कई वर्षों से आज़ाद हैं हम
पर हिंदी अब भी सकुचाती है,
अपनी ही भूमि में फिर क्यों
पनप नहीं वो पाती है?

कोई दोष है दृष्टिकोणों में
जो हीरा देख नहीं पाते,
जब विश्व हिंदी को सीख रहा
हम हिंदी नहीं सिखा पाते।

करो प्रेम सभी भाषाओं से
ये भाषाएं तो बहने हैं
हृदय से हिंदी को धारो
यही भाव हृदय के गहने हैं।

नहीं मिलती नौकरी हिंदी से
ऐसी तुला में मत तोलो,
हिंदी है हीन-ये सोच कभी
नन्हे बच्चों में मत घोलो।

गर्व उसी मस्तक को है
जो स्वाभिमान से जीता है,
हिंदी का प्रेमी विनम्र तो है ,
पर राज हृदय पर करता है।

चौदह सितंबर को हर वर्ष
यदि एक दिवस हम जागेंगे,
इस कालिंदी को गंगा सम
शिव जटा पे कैसे धारेंगे?

शिव जटा पे कैसे धारेंगे?