Sunday, October 1, 2017

Agony of an acid victim

ये न्याय है क्या? या ये छल है?

में जो ना कह दूं, रौंदोंगे मुझे?
और चिढ़ कर दोगे कुछ भी सज़ा?

जीवन भर ढांपे मुख मैं चलूं
बस चुप ही रहूं ? क्या कसूर मेरा?

विश्वास ने मुझको धोखा दिया
घुला रूप मेरा,क्या कसूर मेरा?

अंगार ये पिघले सीसे सा
मुझे छील गया , क्या कसूर मेरा?

आंखों का नूर थी उनका मैं
मुझे बींध दिया, क्या कसूर मेरा?

....................
क्षोभ
छिन्न छिन्न तार तार
एक तरल की वो धार
रेशा रेशा कर गई
नफरतों की ले कटार।

एक पल ने छीना है
बरसों ने जो बनाया था
एक पल ने लूटा है
जीवन मे जो बचाया था

छिन्न छिन्न तार तार
अमानवीय इक प्रहार
आत्मा भी चाक चाक
ऐसी दहशती वो धार।

रूप पे गुमान था
मेरी जो पहचान था
था वजूद मेरा वो
चेहरा मेरी शान था।

इस घाव का मरहम नहीं
इस टीस का फाहा नहीं
अपमान की सीमा नहीं
संग मेरा भी साया नहीं

न्याय की आशा नहीं
सच की परिभाषा नहीं
अपनों का साथ हो तो
भी दूर निराशा नहीं।

रात दिन बार बार
याद दिलाएगी हार
ग्लानि और क्षोभ से
भरी हूँ, करूँ मैं प्रहार?

छिन्न छिन्न तार तार
मौन खड़े क्यों हर बार?

आत्मा है चाक चाक
कब करोगे तुम प्रहार?