Tuesday, July 5, 2022

पाती प्रभु को इक प्रेम भरी - सुनीता राजीव

  

 





अनपढ़ थे अंगूठा छाप थे हम

पढ़ पढ़ कर इतने ज्ञानी  हुए

नापी धरती चीरा वो गगन

 गणितज्ञ बने विज्ञानी हुए ,

 

पर ला पटका हमें वहीँ जहाँ

से हमने शुरू की यात्रा थी

ऑफिस में दैनिक हाजरी तो

लगी आखिर उसी अंगूठे की I

 

कहते हैं , तुम्हें हंसाना हो

 तो योजना बरसों की बुन लो

दुनियां को कैसे चलाना है

 इस भ्रम के बुलबुले को भर लो ,

 

तरक्की के सोपानों पे

थे हम चढ़ , मद में झूम रहे

हर शै है बस में सोच के ये ,

शक्तिमानों से कद में बढे I

 

ये धरती अपनी ज्यों हस्तिनापुर

साम्राज्य हमारा त्रिभुवन है

बन भीष्म ये हम तो समझते थे

अभिमान हमारा अक्षुण्ण है I

 

बस एक शिखंडी करोना का

 भेजा , और सब भ्रम भुला दिया

अस्त्र शास्त्र और औषध का

सारा भ्रम मानो मिटा दिया !

 

 

तुम पीड़ित थे जाना हमने

ये राज़ भूकम्पों  ने भी कहा

तुम रोये जब आंसू भर भर

सागर तब  ही सुनामी बना

 

पर हम तो धृष्ट सी जाति  हैं

जो अपनी डाल  ही काटते है

जो पोषण देती धरा उसे

रौंद रौंद  सुख पाते हैं।

 

तुमने ये किया आघात कड़ा

और सारे नियम दोहरा दिए

जीवन झाड़ा किसी धुल के सम

पर प्रकृति  के रंग लौटा दिए 

 

पर तुमने ही ये ह्रदय दिया

तुमसे ही जीवन पाया है

हर भोर भास्करित करते तुम

मन अभी नहीं कुम्हलाया है।

 

रात के काजल भरे नयन

 हर सुबह तुम्हीं मुंदवाते  हो

हर पतझड़ के पन्नों पर तुम

वसंत के सुर भी सजाते हो

 

थे विषपायी मत भूलो शिव

ये कंठ है नील हलाहल से

ये विष भी पान करो अब शिव

सृष्टि है विचलती क्रंदन से !

 

ना जीवन का संहार करो

निज कृपा की अब बौछार करो

अहिल्या सम हम मूक खड़े

बन राम, के अब उद्धार करो।