Thursday, February 28, 2013

हमसफ़र हमकदम ना हो 
तो हाथ में हो हाथ क्यों ?
जब ताल में कोई सम ना हो 
तो सुख है क्या ? तो साथ क्यों ?

हरियाला मन सुकड़ा   हुआ 
खड़ा क्यों जाने ठूंठ   सा ?
था प्यार सच जो कल तलक 
लागे क्यों जाने झूठ सा ?

 नज़र    घुमा लूं जिस  तरफ 
गहराते इतने सवाल क्यों ?
चला था खोजने किरण 
तो अंधियारे से बवाल क्यों ?

नयी  सुबह की रौशनी 
देती है फिर धोखा नया ,
बिखरता ताश का वो घर
 कोशिश नाकाम कर गया 

जिस घर में देखूं अश्क है 
 जिस घर में देखू आग क्यों ?
हमसफ़र हमकदम ना हो 
तो हाथ में हो हाथ क्यों ?

Friday, February 22, 2013


-एक  बेहोशी के आलम में क्यों जिए जाते हैं ?
रुकना चाह कर भी थम नहीं क्यों पाते हैं ?
दिन पिघलता जाता है जलती हुई बाती की तरह,
रात सरक जाती है तन से किसी चादर की तरह I

दिल में  धड़कन है मगर नब्ज़ फिर भी सुन्न है क्यों?
लाखों बाते है ज़हन में फिर जुबां गुम है क्यों ?
लम्हा लम्हा सरकता जीवन चुरा लेता है
गुज़रते जीवन का साया भी गुमसुम है क्यों ?


 पकड़ के तितली  सा समय,  मैं काश  रख पाता
कल  को जिया नहीं पर आज को तो जी पाता
सूना  सूना सा जो वीराना भरा है मन में ,
उस रेगिस्तान में इक फूल तो खिला पाता I

साए के जैसे बड़ा कद है मेरे ख़्वाबों का ,
कोई हिसाब नहीं स्याह हुई रातों का ,
ख्वाबों के हुस्न में कोई  रात की रानी जैसे
अटका हुआ है इक सवाल कुछ जवाबों का I

हर नया दिन किसी सुरंग सा क्यों लगता है?
किसी शीशे पे पड़ी बूँद सा फिसलता है,
भीगी सड़कों पे नंगे पैर दौड़ता है मन,
 माँ के आँचल में छुप जाने को मचलता है I


Saturday, February 9, 2013


kabhi choo kar koi lamha jo guzra zindagi ka
hamesha qaid tha wo chand lafzon mein shayari ki,
agar ik taar cheda dil ka in lafzon ne, to paya,
wo bas ik baat thi ,jo dil se nikli doston ki.