Tuesday, May 16, 2017

का वर्षा जब कृषि सुखानी ?


ll सीखने की उम्र ll

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जब सूख गए सब डार तो ,तब 
मैंने छाया देना सीखा तो क्या ?
जब वाष्पित हो गए नार तो तब 
मैंने प्यास बुझाना सीखा तो क्या ?

जब सांझ ही आयी जीवन की 
जीवन को पाना सीखा तो क्या ?
जब कर दी क्षति निज क्रोध से तो ,
फिर मरहम लगाना सीखा तो क्या ?

जब सूख गए हृदय के भाव 
प्रेम दया को जाना तो क्या !
यौवन में तो बोये कांटे 
जरा में फूल उगाये तो क्या?

बचते रहे मन को जानने से 
ऐसे तो युवा नहीं भारत के
पियें मस्त नशे भौतिक सुख के 
ऐसे भूले नहीं हैं बालक ये!

जागृति उम्र की दासी नहीं 
कि  होंगे बड़े तो आएगी ,
जागृति है वो उषा की किरण 
जो पट  खोले -उसे पायेगी। 

यह सोच है सीमित हम सबकी 
युवाओं को शांति  दरकार नहीं 
निज मन का मंथन करने को 
उम्र कोई दीवार नहीं। 

विश्व विरासत

विश्व विरासत
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ये धरा है नहीं संपत्ति तेरी 
और तेरी ये जागीर नहीं 
इसे पाया भले है पूर्वजों से   
 ले जान ! तू उत्तराधिकारी नहीं।                                              

इस पृथ्वी पर जीवन जो मिला 

उसे ईश्वर का उपकार  समझ 
इस विश्व का आश्रय , सुख सुविधा,
इन सबको तू उधार समझ। 

जो पाया , लौटना है उसे ,

कुछ सूद भी दे , ये बात समझ, 
इसे ख़र्च तो कर, पर वापस भर,
तेरा ये  नहीं -ये राज़  समझ !

ये प्रण  मैं लूँ  , ये प्रण  तुम लो 

इक आंदोलन अभी बाकी है 
उस विश्व विरासत को जानो 
पानी ये विद्या बाकी है। 

पढ़ पढ़  पोथी पंडित तो बने 

पर प्रेम की पाती बाकी है। 
इस सत्य का मर्म छुपा है कहाँ ?
सबको समझाना बाकी है। 

लम्बी है डगर , मुश्किल है सफर 

पारा कदम कदम हम चलें तो सही ,
शायद है वृहद् ये काम बहुत 
छोटी सी पहल - करें तो सही। 

इस विश्व विरासत को यारों 

अपनी धड़कन समझें तो सही 
सूरज न बन पाए तो क्या 
दीपक सा जलें , पर जलें  तो सही!