Tuesday, May 16, 2017

विश्व विरासत

विश्व विरासत
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ये धरा है नहीं संपत्ति तेरी 
और तेरी ये जागीर नहीं 
इसे पाया भले है पूर्वजों से   
 ले जान ! तू उत्तराधिकारी नहीं।                                              

इस पृथ्वी पर जीवन जो मिला 

उसे ईश्वर का उपकार  समझ 
इस विश्व का आश्रय , सुख सुविधा,
इन सबको तू उधार समझ। 

जो पाया , लौटना है उसे ,

कुछ सूद भी दे , ये बात समझ, 
इसे ख़र्च तो कर, पर वापस भर,
तेरा ये  नहीं -ये राज़  समझ !

ये प्रण  मैं लूँ  , ये प्रण  तुम लो 

इक आंदोलन अभी बाकी है 
उस विश्व विरासत को जानो 
पानी ये विद्या बाकी है। 

पढ़ पढ़  पोथी पंडित तो बने 

पर प्रेम की पाती बाकी है। 
इस सत्य का मर्म छुपा है कहाँ ?
सबको समझाना बाकी है। 

लम्बी है डगर , मुश्किल है सफर 

पारा कदम कदम हम चलें तो सही ,
शायद है वृहद् ये काम बहुत 
छोटी सी पहल - करें तो सही। 

इस विश्व विरासत को यारों 

अपनी धड़कन समझें तो सही 
सूरज न बन पाए तो क्या 
दीपक सा जलें , पर जलें  तो सही!

1 comment:

  1. मन को मोह गई आपकी कविता... नमो वसुंधरा।

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