।*हिंदी-भाषा हृदय की*।
-सुनीता राजीव
हिंदी भारत के माथे की
सौभाग्य सजी सी बिंदी है,
जो कभी गंगा सरीखी थी
आज हुई कालिंदी है।
भारतेंदु जी ने चेता था,
निज भाषा की कीमत जानो
उन्नति के पथ पर बढ़ना है
तो महत्व हिंदी का जानो।
है विश्व हमारा कुटुम्ब मगर
हर जन ये कभी भी भूले ना,
ले चले साथ चाहे अंग्रेज़ी ,
पर अपनी बोली भूले ना ।
सम्मान हृदय में जब तक कि
अपनी भाषा का होगा ना,
तो स्थान विश्व में, कुछ भी करो,
निज देश का तब तक होगा ना।
चाहे चीन कहो जापान कहो
कहो बात फ्रांस या जर्मनी की
है सफल ये देश कि इन सब ने
जानी कीमत निज भाषा की।
कई वर्षों से आज़ाद हैं हम
पर हिंदी अब भी सकुचाती है,
अपनी ही भूमि में फिर क्यों
पनप नहीं वो पाती है?
कोई दोष है दृष्टिकोणों में
जो हीरा देख नहीं पाते,
जब विश्व हिंदी को सीख रहा
हम हिंदी नहीं सिखा पाते।
करो प्रेम सभी भाषाओं से
ये भाषाएं तो बहने हैं
हृदय से हिंदी को धारो
यही भाव हृदय के गहने हैं।
नहीं मिलती नौकरी हिंदी से
ऐसी तुला में मत तोलो,
हिंदी है हीन-ये सोच कभी
नन्हे बच्चों में मत घोलो।
गर्व उसी मस्तक को है
जो स्वाभिमान से जीता है,
हिंदी का प्रेमी विनम्र तो है ,
पर राज हृदय पर करता है।
चौदह सितंबर को हर वर्ष
यदि एक दिवस हम जागेंगे,
इस कालिंदी को गंगा सम
शिव जटा पे कैसे धारेंगे?
शिव जटा पे कैसे धारेंगे?
-सुनीता राजीव
हिंदी भारत के माथे की
सौभाग्य सजी सी बिंदी है,
जो कभी गंगा सरीखी थी
आज हुई कालिंदी है।
भारतेंदु जी ने चेता था,
निज भाषा की कीमत जानो
उन्नति के पथ पर बढ़ना है
तो महत्व हिंदी का जानो।
है विश्व हमारा कुटुम्ब मगर
हर जन ये कभी भी भूले ना,
ले चले साथ चाहे अंग्रेज़ी ,
पर अपनी बोली भूले ना ।
सम्मान हृदय में जब तक कि
अपनी भाषा का होगा ना,
तो स्थान विश्व में, कुछ भी करो,
निज देश का तब तक होगा ना।
चाहे चीन कहो जापान कहो
कहो बात फ्रांस या जर्मनी की
है सफल ये देश कि इन सब ने
जानी कीमत निज भाषा की।
कई वर्षों से आज़ाद हैं हम
पर हिंदी अब भी सकुचाती है,
अपनी ही भूमि में फिर क्यों
पनप नहीं वो पाती है?
कोई दोष है दृष्टिकोणों में
जो हीरा देख नहीं पाते,
जब विश्व हिंदी को सीख रहा
हम हिंदी नहीं सिखा पाते।
करो प्रेम सभी भाषाओं से
ये भाषाएं तो बहने हैं
हृदय से हिंदी को धारो
यही भाव हृदय के गहने हैं।
नहीं मिलती नौकरी हिंदी से
ऐसी तुला में मत तोलो,
हिंदी है हीन-ये सोच कभी
नन्हे बच्चों में मत घोलो।
गर्व उसी मस्तक को है
जो स्वाभिमान से जीता है,
हिंदी का प्रेमी विनम्र तो है ,
पर राज हृदय पर करता है।
चौदह सितंबर को हर वर्ष
यदि एक दिवस हम जागेंगे,
इस कालिंदी को गंगा सम
शिव जटा पे कैसे धारेंगे?
शिव जटा पे कैसे धारेंगे?
Bohut sunder kavita
ReplyDeleteवाह!! बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअति सुंदर ।
ReplyDeleteBeautiful thought provoking poem ..we must understand the importance of our Matra bhaasha hindi
ReplyDeleteमुझे बहुत दिनों से तलाश थी ऐसी कविता की। आज संपूर्ण हो गई । बहुत बहुत बधाई इतनी सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए । साझा करने के लिए आभार ।
ReplyDeleteउत्कृष्ठ कविता.... कविता का हर शब्द हिन्दी की गाथा और व्यथा को दर्शा रहा है ।
ReplyDeleteसर्व प्रथम इतनी भाव पूर्ण कविता लिखने पर आपको ढेरों बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाऐं। आपकी लेखनी जब भी चलती है एक सुन्दर चित्र उभारती है।
ReplyDeleteमुझे इतनी सुन्दर रचना पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार।
अति सुंदर पंक्तियाँँ।हमें अपनी मातृभाषा का सम्मान करना चाहिए।यह कविता हमें और हमारी पीढी के लिए बहुत ही ज्ञानवधृक है।बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteUnnda bhavabhivakti
ReplyDeleteअति सुंदर👌👌👏👏
ReplyDeleteअति उत्तम। काश सभी इस बात की समझें, पर वास्तविकता कुछ और ही है।
ReplyDeleteBeautifully expressed. .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है आपकी
ReplyDeleteHindi is the sweetest language, we all should take pride in using it. Beautiful poem ma'am.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता | सुन्दर शब्द संयोजन से सजी सुन्दर पंक्तियाँ | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसहुब अच्छी कविता ।
ReplyDeleteहिंदी अगर खुद के बारे में लिखती तो भी ऐसा ही लिखती | बहुत सुन्दर कविता लिखी है महोदया |
ReplyDeleteएक एक शब्द मात्र भाषा के प्रेम को दर्शाता है। अनेकों धन्यवाद और खूब बधाई सुंदर रचना के लिए।
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावों से भरपूर
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