Wednesday, October 23, 2013





चाहे अफ़सोस करें चाहे उदासी ओढें
सभी लम्हों ने मिल के साज़िश की है
आँखों की गहेराइयो में भी दुःख है कहीं
और इक इंसान ने फिर ख्वाहिश की है ?

यादों का क्या है , आज है कल नहीं,
कोई सूरज है की रोज़ चमकेंगी ?
फिर गिरेगी हालातों की बिजली ,
यादों की क्या बिसात , कितना दम लेंगी ?

धीरे धीरे कहीं कुछ घुलता है क्यों?
ना चाह के भी कोई छलता है क्यों?
कहीं तो होगा मेरे भरोसे का किनार ,
दिल दरिया सा फिर मचलता है क्यों?

2 comments:

  1. kya kahe ki shabd naa kaaphi se hai
    ehsaas bhi ab tau khone lage hai
    zindagi kaa suraj chamkegaa, lagta hai
    keena hame bhi milega , lagta hai

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    1. बहुत शुक्रिया आपका और आपके शब्दों का !
      कवि के शब्द बहुत कीमती होते हैं , धन्यवाद

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