Thursday, March 5, 2020

एक ख्वाब सा है वो रंगीला
जो कई बरसों में आता है
फिर मस्त पवन के झोंके सा
हर दिल मे बहारें लाता है

जाने ये कैसा नाता है।

जो सूख गई थीं दीवारें
उनमे कोपल वो खिलाता है
जहां दरक पड़े थे पहले कई
वहां मरहम एक लगाता है

जाने ये कैसा नाता है।

जिनसे न खून का रिश्ता है
उनसे भी वो जुड़ जाता है
और हंसी के शोरोगुल में वो
आंसू आंखों में छुपाता है

जाने ये कैसा नाता है।

फिर आज गया कर के वो नया
एक डोर सी बांध के जाता है
जो आज मिले वो भी उसके हुए
ऐसा दिलकश बन जाता है।

जाने ये कैसा नाता है।

चाहे कहीं रहो तुम हंसते रहो
फिर वादे पूरे कर लेना
कुछ बाद सही कुछ यादें सही
मन मे तहा के रख लेना।

गहरा तुमसे ये नाता है
अपनत्व भरा ये नाता है।

-सुनीता राजीव

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