Saturday, May 25, 2019

निरर्थक युद्ध

कैसी होली कैसा उत्सव
कैसी हो धूम कैसा कलरव
ठंडी हो जिस चूल्हे की आग
बुझ गया जिसके घर का चिराग।

वो गया था देश की सीमा पे
छाती गगन सी चौड़ी कर के
23 बरस जिसे पाला था
वहशत का बना निवाला था।

है आज हाहाकार यहां
कल यही सरहद के पार भी था
है मातम में डूबा ये देश
कल वहां भी ऐसा मंज़र था।

ऐ काश कोई कहता उनसे
जो मौत के मंज़र बोते हैं
हो देश कोई दस्तूर कोई
मां बाप सभी के होते हैं।

आज यहां आंसू बहते
कल अश्क़ वहां पे छलके थे
हुआ चाक चाक जिगर उनका
बच्चे जो लिपट के रोते थे।


है हासिल क्या?सोचो तो ज़रा
ज़मीन क्या संग ले जाओगे?
इतना बैर जो पालोगे
किस खुदा को मना लोगे?

राम हो या हो रहीम कोई
रूह तो एक सी रमती है,
एक सीमा रेखा के कारण
क्यों दुश्मनी इतनी बनती है?

बहुत चली हैं बंदूकें
अब अमन हवा में बहने दो
मांओं की गोद उजाड़ो ना
बच्चों को अनाथ न होने दो।



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