Saturday, May 25, 2019

लंकावी

कितना आंखों में भर लूं
आंखे बोलीं जब मन से,
बोला मन , भर ले प्याला
मैं हूँ, रख लूंगा जतन से।

सीना ताने हरियाली चादर
ओढ़े पर्वत ऊंचे,
राज़ सी गहरी शांत बिछी है
घाटी निर्मल वैसे।

जड़ें जकड़ कर मिट्टी को
अपना पन दिखलाती,
छोड़ेंगे ना तुमको हम सब
धीरज यही बंधाती।

देख नज़ारे मन ये कहता
कितना अद्भुत जीवन
हृदय सराबोर खुशी से
नाचे मयूर सा मन ।

मेघ हैं छाए हरित धरा पर
कल कल करता है जल
शुक्र करुं मैं कितना दाता ,
आनंदित है हर पल!
- सुनीता राजीव

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