Saturday, May 21, 2016


सदभावना 





नदिया कहाँ ये पूछती किस नार की ये धार है ?
सूरज कहाँ ये पूछता "कितना बड़ा संसार है?"
राहें ना रोकती पथिक , पेड़ों ने तानी भृकुटि ना, 
कभी मेघ ना कृपण बने फूलों ने रोकी गंध ना ,

बहती हवा सदा यूँ ही , हर एक तन को छू के वो ,
कहती फ़िज़ा सदा यही, "हर जीव ब्रह्म का रूप  ही तो !"
फिर है  कलुष और द्वेष क्यों , नर में, जो रब का रुप है?
क्यों चीन्हता  नहीं हृदय -दूजा भी मेरा प्रतिरूप है.

 वसुधा मिली ,इक माँ है जो ,उस माँ को बांटा धर्म  ने , 
जिसे जोड़ना था ईश से , उस धर्म के हर कर्म ने। 
मंदिर बनाए हमने ही , गिरिजा हमीं ने खड़े किये 
मस्जिद में दे दे अज़ान फिर , गुरुद्वारों से जुड़ा किये। 

इतने से था संतोष ना , हर धर्म पे छुरियां चलीं ,
शैव और वैष्णव बंटे , बंटे शिया और सुन्नी। 
गिरिजा अछूता ना रहा कैथोलिक प्रोटोस्टेंट छंट गए 
गुरुद्वारों में भी कितने ही पंथ जुड़ा हो बंट गए। 

हमने तो  पूजा हर वो दर, जो दर बनाए थे खुद ही ,
था बनाया इन्सां को खुदा ने , उसकी कीमत ना  रही!
रचना का जो सिरमौर है , मानव वो भूला पाठ  सब, 
आतंक की भाषा  कहें , हर धर्म में है है इक 'कसाब '

हर धर्म ने हर जात ने , खड़ी कर दी अपनी खासियत ,
इस शोर में कहाँ गुम हुई  इंसान की इंसानियत !
जो तुझमे है मुझमें  वही, बस फर्क है इक नाम का 
आये ना काम दूसरे के वो भला किस काम का ?

प्रकृति नहीं है पूछती , कोई जात  और मज़हब कभी
इन्सां भला  भटके है क्यों ,क्या जुदा  है ईश से रब कभी ?
कभी मार के इंसान को , कोई जिहाद क्या जी सका ?
कभी मोक्ष का कोई पथ मिला ?कोई मसीह को पा सका ?

नदिया बहे सूरज उगे ,हवाएं हरदम ये हैं कहती 
"जैसे सब की खातिर हम जिए , वैसे सबकी खातिर तू भी जी "
इन्सां  वो ही इंसान है जो ये जान ले के जहां है - 
हर जीव का हर प्राण का , जो ईश की पहचान है। 

हो हिरदै  में संवेदना , पर पीड़ा का एहसास हो 
हर सत्य निष्ठ का धर्म ये - मानवता का ही प्रयास हो !
ना दुशासनों का राज हो , ना विकृत कोई समाज हो 
'निर्भया'और'गुड़िया ' जी सकें ,नारी के सर पे भी ताज हो। 

वसुधैव कुटुंबकम का सुर जिसमें  बजे वही साज़ हो ,
 सम्प्रदायों में सद्भावना से बुलंद हर आवाज़ हो ,
सम्मान सबको यूँ मिले की सबको हिन्द पे नाज़ हो ,
बस है दुआ उस रब से के अब नया आगाज़ हो। 

अब नया आगाज़ हो !


8 comments:

  1. बहोत ही सुन्दर भाव से ओत प्रोत कविता है आज कल के समय के परिपेक्ष में।

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  2. बहोत ही सुन्दर भाव से ओत प्रोत कविता है आज कल के समय के परिपेक्ष में।

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  3. Thanks a lot Sunil!Your words mean a lot to me.

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  5. Dear Geeta, thanks a lot for your comment!Waiting for your new post!

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