Tuesday, November 24, 2020

एक ग़ज़ल ऐसी भी। ....

 


ज़िन्दगी है पहुंची देखो किस कगार पर 

उम्मीद भी टिकी है चार्जर की तार पर। 


खुशफहमियां हैं इतनी, के गिनते नहीं बनता 

लो फिर चली  है ख्वाहिश अपने शिकार पर।  


चुप रहने को कहा है मगर सुन रहें हैं सब  

खामोशियों की चीखें दिल की मज़ार पर। 


वो कौन है जो हमको नसीहत है दे गया 

डूबा नहीं कभी, वो खड़ा है किनार पर। 


है फासले अब और दूरियां भी बहुत हैं 

रिश्ते मगर इतराते है, फिर भी प्यार पर। 


है खौफ के साये गहन, फीकी हुईं खुशियां 

फिर भी  चले आएंगे , तेरी इक पुकार पर। 



1 comment:

  1. कविता लिखने में आप सिद्धहस्त हैं। बहुत सुंदर कविता लिखी है। सचमुच सभी की जिंदगी में चार्जर के तार पर अटक गई हैं

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