Wednesday, November 25, 2020
Tuesday, November 24, 2020
एक ग़ज़ल ऐसी भी। ....
ज़िन्दगी है पहुंची देखो किस कगार पर
उम्मीद भी टिकी है चार्जर की तार पर।
खुशफहमियां हैं इतनी, के गिनते नहीं बनता
लो फिर चली है ख्वाहिश अपने शिकार पर।
चुप रहने को कहा है मगर सुन रहें हैं सब
खामोशियों की चीखें दिल की मज़ार पर।
वो कौन है जो हमको नसीहत है दे गया
डूबा नहीं कभी, वो खड़ा है किनार पर।
है फासले अब और दूरियां भी बहुत हैं
रिश्ते मगर इतराते है, फिर भी प्यार पर।
है खौफ के साये गहन, फीकी हुईं खुशियां
फिर भी चले आएंगे , तेरी इक पुकार पर।
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