प्रकृति का सौंदर्य
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन
बूंदों की पायल पहन के जब करती वो छम छम
मेघों का गान सुन के तो फिर नाचता है मन।
धानी चुनर को ओढ़ के जब झूमती धरा
हरियाले खेतों में है किसने नीर ये भरा?
कलकल सी करती नदिया की चूड़ी की वो खनखन
झीलों की लहरों संग मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
सहमी हवा गुज़रती पेड़ों में सनन सनन
कान्हा की बांसुरी बजाते धीमे से ये वन
बारिश ने भीगी माटी का जब भी किया वरन
सावन की घुंघरू सुन के मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
सपनों से सजे इंद्रधनुष कितने रंगीले
फूलों से रंगे बाग़ दिखें कितने सजीले
रुपहली चाँदनी हो या सुनहली सी सुबह
प्राकृतिक छटा देख मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
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