प्रकृति का सौंदर्य
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन
बूंदों की पायल पहन के जब करती वो छम छम
मेघों का गान सुन के तो फिर नाचता है मन।
धानी चुनर को ओढ़ के जब झूमती धरा
हरियाले खेतों में है किसने नीर ये भरा?
कलकल सी करती नदिया की चूड़ी की वो खनखन
झीलों की लहरों संग मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
सहमी हवा गुज़रती पेड़ों में सनन सनन
कान्हा की बांसुरी बजाते धीमे से ये वन
बारिश ने भीगी माटी का जब भी किया वरन
सावन की घुंघरू सुन के मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
सपनों से सजे इंद्रधनुष कितने रंगीले
फूलों से रंगे बाग़ दिखें कितने सजीले
रुपहली चाँदनी हो या सुनहली सी सुबह
प्राकृतिक छटा देख मेरा नाचता है मन।
संध्या की लालिमा हो या उषा की अरुणिमा
प्रकृति के रूप देख के बस नाचता है मन...................
मेरी मातृभूमि
माथे पर जैसे तिलक सजे , सजे चन्दा गगन विशाल पर
वैसे ही कुमकुम सी सजती मेरी मातृभू विश्व के भाल पर।
अड़सठ वर्षों की युवती है , मेरी मातृभू महिमा मंडित जो ,
गढ़ है ज्ञान और दर्शन का , संपूर्ण विश्व में वन्दित जो,
वेदों की जन्मभूमि है ,ये हुआ गीता का उपदेश यहां
हरि ने स्वयं जहाँ जनम लिया , रचित रामायण हुई जहाँ।
महाभारत और पुराण सभी ,इसी भूमि पर रचे गए
यहीं बुद्ध ने शांति सन्देश दिया ,महावीर के वचन सुने गए.
है अपना जीवन धन्य हुआ , है गर्व भारत खुशहाल पर
कैसी ये कुम कुम सी सजती मेरी मातृभू विश्व के भाल पर।
अपनी धरती अपना है गगन , सबने जय घोष उचारा है
अपनी है प्रजा अपने राजा , और संविधान भी हमारा है।
ये सब है ,कारण फिर है क्यों ,मेरी मातृभूमि क्यों रोती है ?
अब बीती गुलामी की घड़ियाँ, क्यों अँसुअन माल पिरोती है ?
पहले जिसने लूटा नोचा , वो अत्याचारी विदेशी थे
और आज जड़ें जो खोद रहे वो व्यभिचारी तो स्वदेशी हैं
जन्में हैं सभी जिस मिटटी से , खाते ना तरस इस हाल पर ,
फिर कैसे सजेगी कुमकुम सी मेरी मातृभू विश्व के भाल पर ?
निज स्वार्थ बना कर जीवन धन, इस माँ को तुम ना व्यथित करो
बलिदान दिए जिन वीरों ने ,उनके सपने ना भ्रमित करो!
क्या गांधी अन्ना सच के लिए अनशन करते मर जायेंगे?
क्या सोते रहेंगे हम सब यूं और सर्वस खोते जायेंगे?
जब परचम सत्य का होगा हर बच्चे बच्चे के हाथों में ,
जब हर दिल देश को पूजेगा निज कर्म में और वाचन में,
तब कहीं खिलेगी नन्ही हंसी भारत माँ के कपाल पर
तब कुमकुम सी सज पायेगी मेरी मातृभू विश्व के भाल पर।