Wednesday, July 22, 2015



मैं क्या पढूं?



आज फिर सर झुक गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?

वैसे तो हम हैं देवी के अनन्य उपासक --प्राण से !
जो पूजते हैं शक्ति को ऐसे आराधक --मान से !
श्रद्धा और विश्वास का दीपक जला --सम्मान से !
पर देश दुःशासन बना खींचे है चीर -- मैं क्या पढूं ?

आज फिर सर झुक  गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?

कहीं शीलभंग कहीं त्रास है कहीं है नरक --घर में ही !
अपमान के हैं घूँट भी कहीं है तड़प --मन में ही !
कभी फांसी दे दो पेड़ों पे कभी रौंद दो कोई निर्भया,
कभी गाढ़ दो किसी क़ब्र में कुचल दो कोई -'अरुणा '


कुछ भी करो कुछ भी कहो शर्मिन्दा देश है -- क्या पढूं ?
हूँ भारतीय नारी मैं ,मैं क्यों सहूँ चुप क्यों रहूँ ?

आज फिर सर झुक गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?

No comments:

Post a Comment