मैं क्या पढूं?
आज फिर सर झुक गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?
वैसे तो हम हैं देवी के अनन्य उपासक --प्राण से !
जो पूजते हैं शक्ति को , ऐसे आराधक --मान से !
श्रद्धा और विश्वास का दीपक जला --सम्मान से !
पर देश दुःशासन बना खींचे है चीर -- मैं क्या पढूं ?
आज फिर सर झुक गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?
कहीं शीलभंग कहीं त्रास है , कहीं है नरक --घर में ही !
अपमान के हैं घूँट भी , कहीं है तड़प --मन में ही !
कभी फांसी दे दो पेड़ों पे , कभी रौंद दो कोई निर्भया,
कभी गाढ़ दो किसी क़ब्र में , कुचल दो कोई -'अरुणा '
कुछ भी करो कुछ भी कहो , शर्मिन्दा देश है -- क्या पढूं ?
हूँ भारतीय नारी मैं ,मैं क्यों सहूँ , चुप क्यों रहूँ ?
आज फिर सर झुक गया शर्म से मेरा --मैं क्या पढूं?
अखबार के काले हर्फों में है खबर वही -- मैं क्या पढूं ?