एक प्रश्न
चेहरे से छीन लिया है नूर
फिर भी तुम हो बेक़सूर
जाने चले हैं कैसे दांव ?
कर दिया अपनों से दूर।
ज़िन्दगी को जीने का
क्या जोश छीन पाओगे ?
कहो समय ! नीयत है क्या?
कितने सितम और ढाओगे ?
हुलस ह्रदय में रह गयी
इक टीस सुलग के सह गयी ,
बरसों में जो बनायीं थी
इमारतें वो ढह गईं।
इरादे फिर भी आग हैं
मद्धम सुरों में राग है
कहो समय ! नीयत है क्या?
कितने सितम और ढाओगे ?
आँखों के गिर्द अंधेरों में
सुनहरे से सवेरे थे
माथे के उन लकीरों में
कई अनुभवों के सेहरे थे।
नज़रें धुन्धलकी हो चलीं
क्या दृष्टि छीन पाओगे ?
कहो समय ! नीयत है क्या?
कितने सितम और ढाओगे ?
चाहे हूँ मैं उतार पर
मिटने के कगार पर
नाम मगर लिख दिया है
हर एक दिल के तार पर।
कोशिशें असंख्य कर के
क्या हरा यूँ पाओगे ?
कहो समय ! नीयत है क्या?
कितने सितम और ढाओगे ?